Tuesday 19 March 2013

जरुरी मीटिंग


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पिछले
तीन टूट चुके वादों
के बावजूद
मैं करूँगा
एक और वादा
झूठा वादा....
तुम्हारे साथ
यह सन्डे बिताने का.

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इस महीने
जूठे कप भी नहीं खेलेंगे
अन्ताक्षरी
मेरे साथ.

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मेरे दोनों टाइम के ब्रश,
जो इतिहास हैं
मेरी ही बचपन की किताबों का,
जरुरी नहीं हैं.

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दीवारें भी भरने लगी हैं आहें
बोर हो गयी हैं वे
मेरी सोती सांसों की एक ही धुन से  
वे सुनना चाहती हैं
कुछ पुराने गीत
और नए चुटकुले

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आज तो हद हो गई
अपनी सत्यता के नगाड़े पीटने वाले
आईने ने इंकार कर दिया
मुझे ही पहचानने से.
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