Saturday 16 February 2013

ख़जूर और नागफ़नी


कविताओं में छुपे
हे ईश्वर!

मुझे पता है
तुम बाहर नहीं निकलोगे,
लाख पुकारने पर भी नहीं;

क्योकि
बाहर निकलते ही
तुम्हें उगाने होंगे
ख़जूर
अपने ही गंजे सर पर

या फिर
नागफनी
अपने ही नथुनों में.

पर मुझे पता है
तुम बाहर नहीं निकलोगे.

Tuesday 12 February 2013

अधपन्ना....

अधपन्ना कुछ नहीं बल्कि प्रतिपन्ना या प्रतिरूप है. समाज ने मुझे क्या सिखाया या समाज से मैं क्या सीखा , बतौर अनुभव उनकी रसीद है....