Monday 23 December 2013

गाँव


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गहरे अँधेरे में
जलते हर एक बल्ब नें
खुद को बताया
जमीं पर टिमटिमाता हुआ तारा
मैं ढूँढ रहा था
उनमें एक चाँद

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यहाँ कोई भी नहीं रखता
कदम
जवानी में
हाँ ....
कुछ घरों में
बैल जरुर बूढ़े हो रहे है

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बहनों का मायका
वही है
बस बदल चुके है
भाइयों के घर
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कुछ नए चित्र



थाली का सिलिंडर  
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सिलिंडर नहीं है बैगन जैसा
पर बैगन से कम भी नहीं

कंप्यूटर
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‘बस थोडा और’
यही हैं वो तीन शब्द
जिन्हें आज तक नहीं समझ पाया
मेरे ऑफिस का कंप्यूटर

कुछ नए चित्र
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बिफोर
गेंहू-धान
फसलें ओर किसान
नाउ 
लोहा-कंक्रीट
ईमारतें और मशीन.
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पुरुष और स्त्री


पुरुष कौन है?

लिंग के खूंटे से बंधी हुई
बुद्धि ने कहा
हाँ, मैं पुरुष हूँ.

स्त्री कौन है?

खूंटे पर लटकती
उसकी जड़ें कुदेरती
लाश ने कहा
हाँ, मैं स्त्री हूँ.