बारिश में भीगने से बचने के लिए
जरुरत होती है छाते की
बस, और क्या...
बनाये जाते हैं छाते
खरीदे जाते हैं
मूठ से मुड़े हुए
धागे बँधे
बड़े छाते
छोटे छाते
रंगीन
अलग अलग रंगों के
जब भी होती है बारिश
छाते के साथ
छाते के आकाश के नीचे
बच्चे जाते हैं स्कूल
बहते पानी में करते हैं छप-छप
पाँवों से देते है ताल,
बहुत जोर लगाकर
हथेलियों के बीच घुमाते हैं छाते की मूठ
और बारिश को देते हैं नईं दिशा
हल्दी के पात की छाता
कभी- कभी बना लेते हैं
और फिर रख कर सर पर
इठलाते हैं
मुसकुराते हैं
रंगीन छातों के नीचे
धूप को दिखाते हैं पीठ
इंद्रधनुष की तरफ करते हैं इशारा
कुछ पकड़ते भी है इसे
घर भी ले आते हैं बस्ते में रखकर
और चुपके से
रात को सपनों में
खेलते हैं उन रंगों से
जिन्हें क्षणिक बुद्धि सुबह भुला देगी।
हम भी ऐसे ही
छाता लेकर जाते हैं दफ्तर
सब्जी-मण्डी
बाज़ार
इधर-उधर
घर आकर
उन बच्चों को देखते हैं
जो इंद्रधनुष से खेलते हैं
जिनकी ओंठों पर लिखा होता है
छाता होते हुए भी
भीगना
या तपना
धूप में
कभी विभीषिका नहीं होता
मुसकुराते हुए
हम टीवी ऑन करते हैं,
टीवी में
सीमा पर तनाव की ख़बर...
बच्चों के सपनों में
छाता
रंगीन इंद्रधनुष
गुनगुनी धूप
उनकी मुसकुराहट कहती है
न हो बारिश रात भर
न हो तब्दील
सुबह के उजाले
रात के अंधेरों में।