Tuesday 5 November 2013

दुर्भाग्य स्पर्श

था यह कल्पनातीत
पर वक्त के साथ बदल गया
सब कुछ
नहीं बदली तो वह थी गंगा का 'स्पर्श'
और दुर्भाग्य रेखाएं.

बरसन बीत गए
हो न पाया रंगहीन जल रंगहीन

यह श्याम मटमैला काला जल
कराता  है एहसास
इस बात का कि
रंगीन होकर भी कुछ चीजें भद्दी सी, उदास दिखती हैं
जो रंगहीन ही अच्छी थी.

सावन कि काली रात कि तरह
काला हो गया है पानी
शायद आँखे भी हो गयी हैं काली
इस 'स्पर्श' स्थली की
जहाँ विकास की पादुकाओं के तले
रोज रौंदा जाता है
भाग्य
ईर्ष्या की अग्नि में
जलते हुए रोज दिखता है
दुर्भाग्य..

फेसबुकिया दौर...!

फोटो इन्टरनेट से
9:47am पर उठ
वह फेसबुक पर बैठ गया
वाल पर लिखा
'अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं'
'आवाज दो . . हम एक हैं'
'इंक़लाब ज़िन्दाबाद',
'भारत माता की जय'. . .
इसी तरह कुछ अन्य
रोजमर्रा के नारोँ से
जो संकेत देते हैं
वाम पंथ तथा दक्षिण पंथ के एक होने का
और संकेत देते है
'भगवापन' के 'वंदे मातरम' का
अपना स्टेटस अपडेट किया

तभी मित्र का कमेँट
'अन्ना तुम संघर्ष करो. . .
हम तो कर ही रहे हैं!'

उत्तर देता कि
माँ ने पुकारा नाश्ते के लिए
और पूछा कि उसके साथ चलना है
डाक्टर के पास
क्योंकि ब्लड प्रेशर ठीक नहीं रहता
और पापा भी नहीं हैं घर पर
लेकिन बेटा माँ से लड़ गया
'भारत माँ' के लिए

रामलीला मैदान जाने को हुआ
यामाहा CRD 100 पर
तीन चार किक मार चल पड़ा
रास्ते में मिल गई
कालेज की पुरानी गर्ल फ्रैण्ड
अब दोनों ही चल दिए

कश्मीरी गेट पर पूरे दिन घूम
सांझ को चलने लगे
कि दिखाई दिया
अन्ना के समर्थन में 'कैँडिल मार्च'
रु3 की कैँडिल के साथ
दोनों भी आगे बढ़े
थोड़े दूर चले कि
खयाल आया
'कैँडिल लाइट' डिनर का

लो जी बार में भी पहुँच गए
कुछ समय रुक
लड़की चली गई
और वह 'थोड़े' अधिक पी गया
वापस चलने को हुआ कि
रामलीला मैदान का ध्यान आया

वहाँ पहुँचते ही
क्रैन लगा कैमरा उसकी ओर हुआ
और जबां बोलने लगी
'अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ है' , "भारत माता की जय". . . .

उधर कम हुआ
माँ का सर दर्द और बल्ड प्रेशर भी
बेटे को टीवी पर देख

घर पहुँचने पर
जनलोकपाल के 'आधा' पारित होने की खबरें
आने लगी रेडियो पर भी

वह खुश था कि
आंदोलन का हिस्सा रहा,
फेसबुक अकाउंट लाग इन किया
पाया कि
गर्ल फ्रैण्ड का मैसेज था

"बधाई संदेश'' !

संविधान, गाँधी और कुत्ता

मैं संविधान हूँ 
मैं गाँधी की ही तरह हूँ
मेरे पास रोटी और छड़ी दोनों हैं
और तुम कुत्ते हो 


चाहो तो....
रोटी के लिए छड़ी सहो
चाहो तो.

चाहो तो...
दाँत मार कर छड़ी गिरा लो
और छीन लो रोटी


चाहो तो...
मेरे ऊपर बैठ, टाँग खड़ी कर लो 
चाहो तो !

देशप्रेमी?

आपका देशप्रेमी होना क्या आपका फौज में भर्ती होना तय करता है?

या करता है भारत माता/पिता की जय कहना?

या करता है स्वयं को आंदोलनकारी घोषित करना ?

या करता है मेरी तरह कविता करना?

औरत

जिन्दा लाश,
श्मशान में जलकर
हर शाम
फिर से जलने के लिए
जाती है श्मशान में
क्योंकि
हर पिछली शाम
वह भीग चुकी होती है
वीर्य में.

गाय

कृष्ण चंदर के गधे की तरह
बुद्धिमान,
एक गाय;
चल पड़ी संसद मार्ग पर

पहुचते ही
सबकी बुद्धि पर
कर दी चोट उसने
वीरेन की कविता में जैसे

और रचना कर दी
''गौ वंश वध प्रतिषेध अधिनियम' की
प्राथमिक विद्यालय के गणेश की
गति से भी द्रुत

तैतीस करोड़ देवताओं को
स्वयं में
कटेंन करने वाली
हे गाय माता;
हमें भी दो सींग
वरदान में,
एक ही सही
ताकि आसानी हो
छलनी करने में
इस मृत संविधान की आत्मा.

ग़ज़ल

तर्के लज्जत,अब जिद करले ज़रा सी जिदाइश के लिए,

अब तो ज़र्रा-ज़र्रा चीख़े,ज़रा-सी सुगबुगाहट के लिए!


दग्ध सूरज जल रहा है,थका हुआ अब चाँद भी,

अब तो इज़्हार अब तो करले आग लगाने के लिए!


आज कत्ले आम यहाँ भी, शहर वीरां तब वहाँ भी,

अब तो लाशोँ को जगा ले,जिनाजोँ को सुलाने के लिए!


खस्तः हाल अब ये जमीँ भी,और ये दर्या भी रोये,

अब तो दर्या को बदल ले,हुकूमत को गिराने के लिए!


दीवार टूटी,घर भी उजङे,खंडहर अब दिखे नहीं,

अब तो कतरः भी बहा ले,अजले रौसन के लिए

बीते समय के दिन……




हमेशा की तरह आने वाले समय का अंदाजा लगाना काफी कठिन होता है।  सुबहअच्छी पर उमस भरी सभी लोग अपने कामों में व्यस्त, कालेज के दिन थे तोस्वतंत्रता अपने चरम पर थी। इतने में मैंने मोबाइल को ऑन किया तो समयसाढ़े नौ बजे थे।  मेरा मन इस समय भी मुझे उठने की इजाजत नही दे रहा थापरन्तु समय की पहचान को बनाये रखने के लिए आवश्यक था मेरा उठ जाना।  सारेकार्यों को पुराने दिनों के अनुसार ही करता रहा।सिर्फ धूर्त लोगों की शैतानी योजनाएं ही सफल हो पाती हैं; अच्छे दिलोंकी मासूम योजनाएं कम ही सफल हो पाती हैंपृष्ठ के ठहराव पर ऐसी ही पंक्तियां थी जो प्रसिद्ध फ्रेंच दार्शनिकज्यां-जाक रूसो द्वारा उनकी आत्म-स्वीकृति में लिखी तथा उस वक्त लगातारमेरे द्वारा आगे पढ़ी जा रही थी।  सम्पूर्ण पृष्ठभूमि का ब्यौरा तो नहीदिया जा सकता परन्तु हाँ पृष्ठ दर पृष्ठ पढने के साथ मुझे लगा कि रूसो उनमहान व्यक्तित्वों में से एक रहे होंगे जो अपनी गलतियों को किसी भी हद तकस्वीकार करने के लिए तैयार थे व साथ ही जिनकी कलम को दूसरों की गलतियों वकमियों के बारे में बेबाक तरीके से लिखते हुए कोई परहेज नही होता रहाहोगा।  यह समय का ऐसा दौर था जब मैं रूसो को तक़रीबन आधा जान चूका था।  मनके कई सवालों को समाप्त करने के लिए उस वक्त मेरे लिए उन्हें लगातार पढनाही एक मात्र विकल्प था।

      अब तक रूसो तीसरे बच्चे को भी पहले दो की तरह ही बच्चों के अस्पताल मेंछोड़ देता है।  इस घटना के बाद मुझे अपने देश की संस्कृति की बात असमय हीयाद आयी।  मुझे यह कहते हुए भी संकोच नही हो रहा है कि हिदुस्तान केसामाजिक और सांसकृतिक दबाव उस महान दार्शनिक को इस तरह के लगातार दुहरावसे बचाते यह बहुत सच है कि किसी भी व्यक्ति पर उसके अपने देश की संस्कृतिव परिस्थितियों का बहुत हद तक फर्क पड़ता है।
  
        अचानक समय कुछ तेजी से चलता प्रतीत हुआ छह बज चुके थे।  अतः शामको अक्सर समाज में अपनी उपस्थिति को बनाए रखने के लिए हमारा घुमने जानाही सर्वोतम विकल्प होता है।  श्रीनगर की भौगोलिक स्थिति का वर्णन करनेमें अकारण ही असमर्थ हूँ पर मेरे मेरे निवास से कुछ दूर पर मेरे श्रेष्ठमित्र या कहें सहायक रहते हैं।   मैं उनसे कितनी बार मिला हूँ यह मुझेयाद नही परन्तु हाँ जब भी मिलता हूँ उनका साथ रोचक और महत्वपूर्ण होताहै।  बहुत बार तो कई घटनाओं के प्रति मेरे नकारात्मक रवैये के परिवर्तनके लिए वे ही जिम्मेदार होते हैं।  दरअसल उनसे मेरी मुलाकात ३ वर्धपुरानी पर हमेशा नई लगने वाली थी।  उनके और मेरे बीच की एक पुरानी घटनाका मैं यहाँ अवश्य वर्णन करना चाहूँगा।     

          एक बार किसी दुसरे व्यक्ति के काम से उसके साथ हमें बैंक जाना था। वह दूसरा उनका मित्र था।  उनके मित्र की प्रकृति हमेशा ही दूसरों कोतरह-तरह के ब्रह्मज्ञानों से अवगत कराने की रहती है।  अनेक तरह की तकनीकीतथा आधुनिकता के ज्ञान के लिए उनका साथ ही महत्वपूर्ण होता था।  उनकेवर्णन के लिए भी कलम समय की मांग करती है अतः यहाँ मैं उनकी अधिक बात नहीकर सकूँगा।  बहरहाल हमने बैंक जाने तक काफी आधुकनिकता की बातें की अपनीदृष्टि को सीधा ही रखा बजाय वहां के जहाँ हमारे विश्वविद्यालय में प्रवेशके लिए एक टेढ़ा रास्ता तैयार किया गया था।  टेढ़े रास्ते के कारण वहां नजरभी थोड़ी टेढ़ी हो ही जाती है।  आगे विश्वविद्यालय व उसके तुरंत नीचे बैंकथा।  बैंक पहुँचते ही उनका मित्र अपने कार्य में व्यस्त हो गया व मैं औरमेरा मित्र वहां रखी कुर्सियों पर बैठ गये। हमारे पीछे कांच की एक मोटीसी दीवार थी। मैंने अपने श्रेष्ठ मित्र को पीछे घूमकर कांच की दीवार कीतरफ इशारा करके यह बताने की कोशिश की कि वह इस बात के लिए आश्चर्य करे किवहां एक जवान शानदार चमक लिए एक बैंक अधिकारी बैठा हुआ है। हमेशा की तरहमैं इन अधिकारियों की तरफ थोडा आकर्षित हो ही जाता हूँ। उनकी शक्ल,पहनावाऔर उनसे मिलने की चाह तथा इसमें सफल भी हो जाना मुझे बड़ा अच्छा लगता है।बैंक के अन्दर की चीजों को देखने का दौर लगातार जारी था। इसी बीच एकलड़की कम महिलाका अचानक दरवाजे से प्रवेश हुआ। उसके लिए मेरी पहली नजरतो सम्मानजनक थी परन्तु नजर परिवर्तन के बाद उस सम्मानजनक स्थिति कोभूलकर मैं उसके ढांचे की तरफ ध्यान देने लगा। समय के साथ नजर परिवर्तन कोस्वाभाविक मानने वालों को ज्ञात होगा कि नजरें समय की समानुपात होती हैं।वह आवश्यकता से अधिक चर्बी वाली फूली हुई लड़की थी। मुझे लगा की एक मेराशरीर है जिस पर कहीं भी विटामिन और प्रोटीन के होने का कोई साबुत नजर नहीआता एक यह लड़की है जो विटामिन और प्रोटीन की भंडार है। पर फिर भी मुझेउसे देखकर हंसी आ रही थी। उसे देखकर मन की हंसी का दांतों पर न आने काकारण आस-पास कई लोगों का होना था। उसके शरीर की बनावट ही कुछ ऐसी थी किमेरे मित्र की नजरें मुझे बचाकर उसे देखने की कोशिस कर रही थी। कुछ समयबाद बैंक का काम खत्म हो गया तथा हम साथ-साथ बहार आ गये। उस लड़की कोदेखने के समय व बाहर आने तक के समय में काफी अधिक अंतर होने के कारण मेरीबाहरी हंसी में भी अंतर आ गया। परन्तु मेरी आँखों ने अन्दर कुछ ऐसा देखाथा कि मेरा मन स्वाभाविक तौर पर उस लड़की के शरीर को याद करके अनेक प्रकारकी आवृतियाँ विकसित कर रहा था। 

      तब से लेकर हम इस वाकये को कभी-कभी मजाक के तौर पर याद कर लिया करतेहैं। आश्चर्यजनक रूप से इस वाकये को याद करने का समय भी आज ही था।श्रीनगर स्थित गढ़वाल मंडल विकास निगम दफ्तर के ठीक नीचे सड़क पर मेरेमित्र ने ही संस्मरण को याद दिलाया। क्योंकि हम उनके निवास से बाज़ार आचुके थे और घुमने के बाद वापसी की तैयारी में थे। यह बात मनुष्य को कितनीस्पष्ट तरीके से पता होती है कि हर शाम को उसे अपने घर लौटना है। भले हीघर लौटने तक की प्रक्रिया में वह कितने ही कार्यों को भूल चूका होता हैपरन्तु घर लौटना हमेशा ही याद रहता है। आते वक्त हम यहाँ के एक मात्रअजीब से दिखने वाले सिनेमा घर के नीचे खड़े थे। यहाँ हमें खड़े करीब पांचसे दस मिनट हो चुके थे और हाँ किसी नशीले पदार्थ को लेकर अपनी बात कोजारी रखे हुए थे। उन दिनों हम साथ मिलकर सिगरेट पिया करते थे. काफी लम्बीबातों के बाद हम सिगरेट खरीदने के लिए दुकान के पास पहुँच गये। मेरेमित्र ने दुकान वाले से कहा कि वह राजा के आकार किंग साइज़नामक सिगरेटऔर एक माचिस दे। ये चीजें मेरी उपरी जेब पर रखते हुए मैं और मित्र तेजीसे आगे चलने लगे। अधिकतर गलत कार्यों को मनुष्य सबकी नजरों से बचकर यारात के अँधेरे में ही करता है। अतः इसके उपयोग के लिए हमारी प्राथमिकताएक अँधेरी जगह थी। वहां पहुंचे और माचिस के साथ उस पदार्थ को अग्नि देकरहम पूरे जोश और आजादी के साथ उसके इस्तेमाल को तैयार थे। उस जगह पर कभीगाड़ियों और लोंगो के आ जाने से आधे-अधूरे हमने उनको बुझा दिया। मुझे उसेपीने के बाद कुछ अजीब शा महसूस हो रहा था। शायद राजा के आकर ने मेरेअपेक्षाकृत कमजोर शरीर को पसंद नही किया। परन्तु इस कार्य के बाद मुझेशर्म महसूस हो रही थी मेरे मित्र द्वारा मुझे काफी समझाने के बाद हम वहांसे लौटने लगे। जो कार्य हम कर चुके थे उसके लिए शर्मिंदा होने से क्या हलनिकलने वाला था यह सोचते हुए हम अपने-अपने निवास में आ चुके थे। मैंनेरूसो की अधूरी पढ़ी हुई जीवनी को पुनः पढना प्रारंभ किया ।इसी बीच रूसो के खिलाफ एक बदमाश द्वारा षड़यंत्र रचे जाने व उसका पीछा किएजाने पर रूसो ने एक बन्दूक मंगवा दी तथा इस आदेश के साथ माली को थमा दीकि- इसका उपयोग सिर्फ गहरे संकट के समय किया जाय और सिर्फ हवा मेंगोलियां दागी जाएँ। साथ ही रूसो ने घर की निगरानी के लिए एक कुत्ता भी रखलिया। 

      आश्चर्य की बात देखिये वह बदमाश खुद उसका ही माली था।    अब समय बहुत आगे निकल गया है। अपने कामों के लिए मेरे सभी मित्रअलग-अलग जगह चले गये हैं। मैं अब अकेला ही इस शहर के साथ चल रहा हूँ।कभी-कभार केवल फ़ोन पर ही दोस्तों से बातें होती हैं। नशा करने के लिएवजह, समय तथा साथी तीनों नही हैं इसलिए यह भी छूट गया है। अब सभी कुछसामान्य ही चलता है।

                                                    

31-07-2011                                                    दीपक ध्यानी                                                                      mobile  08755542424  मेल-[ deepak.hnb@gmail.com]