Wednesday 3 February 2016

नईं फिल्म

बंजर खेत...

खूब मेहनत की गई
खून-पसीने से सींचा गया
कई जीवन लगे
कई पीढ़ियाँ लगी
फिर हुआ
बंजर खेत उपजाऊ,
बीज के लायक।

बोये गए बीज
उम्मीदों के साथ,
आँखों में कुछ सपने लेकर;
गीत गाये गए
जिनमे सुर थे इन्हीं सपनों के
संगीत था खुशहाली का
उम्मीद का
जोश का
वर्षों की मेहनत खून पसीने के सफल होने का

अब हर दिन
माना जाता सफलता का दिन
और
वो दिन भी आया
जब धरती ने उगला सोना
उगला हीरा मोती
जब धरती से अंकुर फूटा;
फिर नाच हुआ
गान हुआ
एक और मौका मिला खुश होंने का

अंकुर बढ़ने लगा
पेड़ हुआ...
वर्षों का खून दिखने लगा
जड़ से पत्तियों तक में;
मेहनत की मजबूती
तनों में;
पसीने की खुसबू उड़ी
फूलों से;

अब फलों के पकने का इंतजार था,
लेकिन यह क्या!
जो फल थे पहुँच तक वे सड़ने लगे
जो थे पहुँच से बाहर वही पके

घोर निराशा
वितृष्णा
घृणा
सब जगह फैली
सब सपने टूटे
आशाएँ भ्रम ही रही

लोग भूल रहे हैं इतिहास
भूल रहे हैं खून पसीने की मेहनत
भूल रहे हैं ख़त्म हुए जीवन
खत्म हुई पीढियां भूल रहे हैं
वे जीने लगे खेत को बंजर मानकर
नीयति को दोष देकर

अब कुछ लोग हैं
जिन्होंने नईं फिल्म बनाई है
फिल्म बंजर खेत के उपजाऊ होने के इतिहास पर
नायक खूब मेहनत करता है फिल्म में
खूब पसीना बहाता है,
नायक की मेहनत से भी
उपजाऊ हुआ बंजर खेत,
खेत ने उगला सोना
उगला हीरा मोती
अंकुर भी खेत से फूटा
यह पेड़ हुआ
इसमें फल लगे
लेकिन कोई भी फल नहीं सड़ा
और ये फल सबकी पहुँच में थे
यहीं फिल्म का सुखद अंत होता है

यह फिल्म दिखाई जा रही है हमें बार बार
फ़िल्मी इतिहास को बताया जा रहा है
हमारा इतिहास
फ़िल्मी नायक को भी बताया जा रहा है
हमारा नायक

ये वही हैं
जो इतिहास में कहीं नहीं थे
मेहनत करते हुए कहीं नहीं थे
न खून बहाते हुए न पसीने से भीगते हुए;
लेकिन ये सत्ता में हैं।

No comments:

Post a Comment