एक थी चिड़िया
आज़ाद खयाली
नीले आसमान में
दूर दूर उड़ने वाली
पंख फैलाये
जब वह हवा से बातें करती
मैं उसे देखता
हवा सा बातें करता
हर दिन
झूमती नाचती गाती
यहाँ से दूर आसमान तक
उड़ती जाती
एक दिन उसने कहा
चलो हम उड़ते ही जाएँ
इस छोर से अनंत तक
उड़ते ही जाएँ
लेकिन,
उड़ न सकी वो अनंत तक
उसे इस धरती पर आना पड़ा
फिर उसने दुनियां को बंद पिंजड़ा कहा
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