चुप चुप के घर से निकलना तेरा
कैद क्या छूटी अल् अज़ब मिलना तेरा।
हलचल थी मुझमें, आश्ना भी होगी
आश्ना क्या आशिकी कर गुजरना तेरा।
रुख्शिंदगी नैनों में ख़ामोशी दिलों में
सुर्ख लबों का क्या, लरजना तेरा।
ये जहान कहीं खो गया है शायद
दिखा जब सबब बे-सबब हँसना तेरा।
अशआर मिरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं *
जल उठा आफ़ताब, वो सुनना तेरा।
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* जाँ निसार अख्तर की एक ग़ज़ल का मिसरा
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