Friday, 27 November 2015

उसने दुनियां को बंद पिंजड़ा कहा

एक थी चिड़िया
आज़ाद खयाली
नीले आसमान में
दूर दूर उड़ने वाली

पंख फैलाये
जब वह हवा से बातें करती
मैं उसे देखता
हवा सा बातें करता

हर दिन
झूमती नाचती गाती
यहाँ से दूर आसमान तक
उड़ती जाती

एक दिन उसने कहा
चलो हम उड़ते ही जाएँ
इस छोर से अनंत तक
उड़ते ही जाएँ

लेकिन,
उड़ न सकी वो अनंत तक
उसे इस धरती पर आना पड़ा
फिर उसने दुनियां को बंद पिंजड़ा कहा

ग़ज़ल

चुप चुप के घर से निकलना तेरा
कैद क्या छूटी अल् अज़ब मिलना तेरा।

हलचल थी मुझमें, आश्ना भी होगी
आश्ना क्या आशिकी कर गुजरना तेरा।

रुख्शिंदगी नैनों में ख़ामोशी दिलों में
सुर्ख लबों का क्या, लरजना तेरा।

ये जहान कहीं खो गया है शायद
दिखा जब सबब बे-सबब हँसना तेरा।

अशआर मिरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं *
जल उठा आफ़ताब, वो सुनना तेरा।

.
* जाँ निसार अख्तर की एक ग़ज़ल का मिसरा

ग़ज़ल

चुप चुप के घर से निकलना तेरा
कैद क्या छूटी अल् अज़ब मिलना तेरा।

हलचल थी मुझमें, आश्ना भी होगी
आश्ना क्या आशिकी कर गुजरना तेरा।

रुख्शिंदगी नैनों में ख़ामोशी दिलों में
सुर्ख लबों का क्या, लरजना तेरा।

ये जहान कहीं खो गया है शायद
दिखा जब सबब बे-सबब हँसना तेरा।

अशआर मिरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं *
जल उठा आफ़ताब, वो सुनना तेरा।
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* जाँ निसार अख्तर की एक ग़ज़ल का मिसरा