Monday 24 February 2014

लोकतंत्र


हमारे घर पर थे
चार बैल
आठ गायें
पांच भैंसें
कुछ छोटे-बड़े बछड़े
कुछ छोटे-बड़े काटूर भी
दस-एक बकरियां
दस-एक भेड़ें
पता नहीं और क्या क्या
और कितने कितने

हर साल
कुछ नए पैदा होते
कुछ मर जाते
जरुरत के हिसाब से
कुछ बेचे जाते
और कुछ ख़रीदे भी जाते
और जरुरत के हिसाब से ही
कुछ मार भी दिए जाते

जानवरों के मरने पर
सबसे ज्यादा 
दुःख दादी को होता
फिर भी वह अपने को दिलासा देती
‘जिसके घर में ज्यादा होगे
तो मरेंगे भी ज्यादा’
उन्हें सच्चे अर्थो में
भारतीय लोकतंत्र की पहचान थी.

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