Sunday 5 January 2014

फसल


फसल
फसल पक गई है
तैयार है
बाज़ार में बिकने के लिए

खरीददार आए 
कुछ ने कहा मोटी है
कुछ ने कहा छोटी है
और चले गए
फसल वैसी ही रह गई
बंद कमरे में
किसी कोने में
आँगन में, किसी दर में
टूटते तारों को देखती
तसव्वुर सजाती
सपनों में झूलती, अँधेरी रात में
समय को रोकती
हवा को पूछती
दिशाओं को देखती, सूरज की छाव में

फिर खरीददार आए
कुछ ने कहा ऐसी है
कुछ ने कहा वैसी है
फसल वैसी ही रह गई
दुनिया से छिपती
खुद को छिपाती
दौड़ती भागती, उजले संसार में
हिलोरे लेती
लरजती
ज्वार का पेट भरती भूख में और प्यास में
कुछ खरीददार और आएँगे 
और चले जाएँगे
फसल वैसी ही रह जाएगी 
सनद-याफ्त
अम्वात
घर में और बाज़ार में

फसल
जो लड़की है
जो ऐसी है वैसी है
जो छोटी है मोटी है
किसान की बेटी है

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