Saturday 9 February 2019

तुम


किसी टूटी इमारत सा
जीवन के प्रति उदासीन
निढ़ाल
थकान में ध्वस्त
टूटा हुआ
पस्त
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
जैसे हो अंतिम प्रार्थना

तुम छूती हो मेरे हाथ
कम्पन
नया जीवन
भर दिया गया हो मुझमें
एक और बार जैसे

चूमती हो मेरा माथा
मैं महसूस करता हूँ
अपना होना, 
शोर के बीच
धुन का बजना

तुम चूमती हो मेरी आँखें
मैं सपने देखने लगता हूँ


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