Thursday 28 March 2013

ठंडी कुल्फ़ी


ठेली वाला चिल्ला रहा होगा
‘‘कुल्फ़ी... ठंडी ठंडी कुल्फ़ी’’

नया जोड़ा
प्रेम की गर्म सांसों को भूल कर
जाएगा ठंडी कुल्फ़ी की ठेली पर

‘भईया दो कुल्फ़ी’
इसी मांग के साथ
उन्हें थमा दी जाएंगी
ऐतिहासिक तलवारों सी कुल्फियां
गर्म हवा की पिचकारियों से लड़ने को

भरी दोपहर में
जब मरते दम तक साथ निभाने वाली
छाया भी खेल रही होगी
छुपम छुपाई
प्रेमी करेगा वादा
आश्मां से तारे तोड़ लाने का

प्रेमिका की हलकी हंसी
और उसके फ़सने का एहसास
उसके वादे को लिख देंगी
कांच के भंगुर कागज पर

पिघल रही कुल्फ़ी
झुटला देगी
हर कठनाई में
उसके हिमालय बनने के वादे को

प्रेमी सिकोड़ देगा अपनी भोहें
जब वे सुनेंगे
अधनंगे बच्चे से
उनकी जोड़ी के सलामत रहने का श्लोक.

प्रेमिका यमुना नहीं है
नहीं है कुल्फ़ी से टपकती बूँद
जिसकी नियति ही में हो
‘ओह’ और ‘अरे’ का संगीत

वह पैदा करेगी
अपनी हंसी के बाद
सिकुड़ती भोहों की जमीं पर  
‘नहीं’ के स्वर का तूफान

ठेली वाला चिल्ला रहा होगा
‘‘कुल्फ़ी... ठंडी ठंडी कुल्फ़ी’’






Thursday 21 March 2013

हमारे प्रेम के महान गीत


१)***

मैं बता रहा होऊंगा
अपनी महिला मित्र को
मुझे पसंद हैं
तुम्हारी तथाकथित
झील सी गहरी
नीली आखें
जिनमे मैं डूब जाना चाहता हूँ  
पुराने प्रेमियों के माफ़िक
जबकि नहीं रहा पसंद मुझे
नहाना
ठन्डे पानी में तो बिलकुल भी नहीं

२)***

फाल्गुनी धुप में नहाई
जून के महीने में
तुम जाओगी पोस्ट ऑफिस
पसीने से तर-बतर
किसी बूढ़े की छड़ी सी
सिथिल
तुम बैठोगी
लोहे की
सार्वजनिक बेंच पर
रुक रुक चलने वाले
पुराने पंखे के नीचे
जहाँ मैं मर जाना चाहूँगा

तुम्हारे
कांधे पर सर रखकर

तुम्हारे
पसीने की गंध में खोकर

तुम्हारे
पोस्टल लाइफ इन्सुरेंस
जमा करने के बाद.

३) ***

उम्र के बाईसवें पड़ाव में
मैं गुजारना चाहता हूँ
केवल और केवल
तीन रातें
तुम्हारे साथ

पहली रात
जब तुम आओ 
मेरे सपनो में

दूसरी रात
जब मैं दिखूं तुम्हें
सोता हुआ
तुम्हारे सपनों में

तीसरी रात
तुम्हारी गोद में सर रखकर
मैं चाहूँगा
तुम कहो ‘आई लव यू’

४)***

तुमने रिकॉर्ड किये
हमारे प्रेम के महान गीत
मेरे लिए
अपनी आवाज में
इन गीतों में नहीं था कोई संगीत
सिवाय तुम्हारे होंठों की कपकपीं के

५)***

पहले की तरह
आज भी हूँ
तुमसे दो कदम दूर

पता नहीं क्यों
तुम नहीं निकली घर से
चार-दिवारी को लाँघ कर

जबकि मुझे लगता था
हमारी गर्म सांसे पिघला सकती हैं
चीन की दीवार 

Tuesday 19 March 2013

जरुरी मीटिंग


***

पिछले
तीन टूट चुके वादों
के बावजूद
मैं करूँगा
एक और वादा
झूठा वादा....
तुम्हारे साथ
यह सन्डे बिताने का.

***

इस महीने
जूठे कप भी नहीं खेलेंगे
अन्ताक्षरी
मेरे साथ.

***

मेरे दोनों टाइम के ब्रश,
जो इतिहास हैं
मेरी ही बचपन की किताबों का,
जरुरी नहीं हैं.

***

दीवारें भी भरने लगी हैं आहें
बोर हो गयी हैं वे
मेरी सोती सांसों की एक ही धुन से  
वे सुनना चाहती हैं
कुछ पुराने गीत
और नए चुटकुले

***

आज तो हद हो गई
अपनी सत्यता के नगाड़े पीटने वाले
आईने ने इंकार कर दिया
मुझे ही पहचानने से.
*** 

Monday 11 March 2013

पोस्टकार्ड

तुम लिखती रहना
पोस्टकार्ड
और भी बड़े अर्थों में

तुम्हारा लिखा हर एक अक्षर
मैं सहेजुंगा
अपनी-हमारी यादों की किताबों में
जहाँ यह धत्ता बता देगा
नजरबन्द करती दीवारों को
और साबित कर देगा उन्हें
एक झीना पर्दा

तुम्हारा लिखा हर एक पोस्टकार्ड
उतार फेंक रहा होगा
ग्लोबलाइजेशन की सदी में
महान लोकतंत्र के मुखौटे को.



स्त्री:- आम और एप्पल


अब नहीं उगेगी
लटके हुए
केवल दो आमों की फसलें
तुम्हारी
सपाट बंजर छातियो पर;

क्रीम और टोनर की खादें
पैदा कर देंगी
रेगिस्थान पर मरुधान

पैदा कर देंगी
रसीले आम
सुडौल एप्पल

पैदा करेंगी
सिहरन की
लताएँ
मेरे भी शरीर में;

तब तब
वे पैदा करेंगी
लालसा
मेरे हाथों में
उन्हें समेट लेने की
उन्हें पंहुचा देने की
उनके नेकअंजाम तक

जब जब
तुम्हारी
हंसती हुई
धधकती हुई
छातीयां कहेगी
‘हाँ मैं स्त्री हूँ’