Wednesday 26 March 2014

मुल्ला नशरुद्दीन का दांत दर्द


मुल्ला नशरुद्दीन थे तो दन्त चिकित्सक पर उनके एक दांत में दर्द होता ही रहता था. दवा-दारू-दुआ करने पर भी दर्द थोड़े समय के लिए ही ठीक होता, स्थाई रूप से दर्द ख़त्म नहीं हुआ. कईयों के दांत उखाड़ने वाले मुल्ला नशरुद्दीन को उनके कई मित्रों ने उस एक दांत को उखाड़ लेने का सुझाव दिया पर उखाड़ते वक़्त होने वाले दर्द की कल्पना से ही उनका दर्द न करने वाला दांत भी दर्द करने लगता.

एक बार वह सर्कस में बन्दरों का नाच देख रहे थे. तभी उनके दांत में दर्द शुरू हो उठा. दर्द से वह छटपटा उठे. उन्होंने अपना हाथ गाल पर रखा और बाहर जाने को तैयार हुए. सहसा बन्दर से उन्हें हनुमान का ध्यान आया और उन्होंने हनुमान का स्मरण करना शुरू कर दिया. पूरे मन से ध्यान लगाने पर दर्द कम होता गया और पांच मिनट में ही दर्द ख़त्म हो गया. मुल्ला नशरुद्दीन ने इसके लिए हनुमान को धन्यवाद दिया और फिर से वही बंदरों का नाच देखने लगे.

पर उनका दांत दर्द थोड़े समय के लिए ही ठीक होता था, स्थाई रूप से नहीं. इसीलिये पांच घंटे बाद एक बार दर्द फिर शुरू हो गया. उन्होंने फिर से हनुमान का स्मरण करना शुरू कर दिया. जब आधे घंटे तक भी स्मरण करने के बाद दर्द कम नहीं हुआ तो वह झंड हो कर घर आ गए. पांच दिन तक उन्होंने कई बार हनुमान का स्मरण किया पर हुआ कुछ नहीं अंत में राहत दवा और दारू से ही मिली.

मुल्ला नशरुद्दीन चुप रहकर सोचते बहुत थे. सर्कसी दर्द ने एक बार फिर उनको को चुप रहकर सोचने के लिए मजबूर कर दिया. अब वे दांत दर्द से कम और इस बात से अधिक परेशान थे कि हनुमान ने एक बार दर्द ठीक किया पर दूसरी बार क्यों नहीं? जबकि दूसरी बार के दर्द में अधिक ध्यान और अधिक समय तक हनुमान का स्मरण उन्होंने किया. बहुत सोच विचार करने के बाद किसी से पूछ कर उन्होंने निश्चय किया कि वह हनुमान से ही यह प्रश्न करेगें जिसके लिए उन्हें हनुमान के दर्शन करने थे और दर्शन के लिए तपस्या.

मुल्ला नशरुद्दीन दवा और दारू के साथ घर से निकल पड़े. वह कोई अनपढ़ नहीं थे बाकायदा उनके पास देशी विदेशी विश्विद्यालयों की दर्जनों-किलो भर डिग्री पड़ी थी. इसी के चलते दूर घने जंगल में उन्हें तपस्या करना अटपटा महसूस हुआ. उसने फिर से चुप रह कर बहुत सोचा और शहर में तपस्या करने का निर्णय किसी से पूछ कर लिया. बस स्टैंड पर पहुचते ही एक प्रश्न उनके मन में कौंधा कि तपस्या कहाँ की जाय? वाशिंगटन या दिल्ली ?  बहुत सोच-विचार के बाद किसी से पूछ कर निर्णय लिया कि पहले पांच साल दिल्ली करते हैं और बाद के पांच-पांच साल के हिसाब से बाद में देखी जाएगी.

पांच साल दिल्ली में तपस्या करते हुए भी मुल्ला नशरुद्दीन के दांत बहुत बार दर्द हुआ. पर दवा और दारु ने उन्हें कभी कभी थोडा राहत पहुचाई. पांच साल तक तपस्या करने के बाद भी जब हनुमान ने दर्शन नहीं दिए तो किसी से पूछ कर उन्होंने खूब सोचा और फिर से दिल्ली में ही तपस्या की. फिर भी वही हाल. दवा और दारु भी पांच साल के साथ ख़त्म होने वाली थी हालत बड़ी बुरी थी मुल्ला नशरुद्दीन की. उसने फिर किसी से पूछ कर सोचा और अपने आप से कहा कि इतिहास उनके साथ न्याय करेगा.

इधर देवताओं ने हनुमान की छीछालेदर करनी शुरू कर दी कि वह अपने भक्त मुल्ला नशरुद्दीन को दर्शन क्यों नहीं दे रहा है जबकि वह दांत दर्द होते हुए भी तुम्हारी तपस्या कर रहा है. हनुमान ने भी बाकि देवताओं से कहा कि इतिहास उनके साथ न्याय करेगा. और मुल्ला नशरुद्दीन को दर्शन देने चल पड़े. हनुमान के दर्शनों से मुल्ला नशरुद्दीन बहुत खुश हुआ. हनुमान ने भी मुल्ला नशरुद्दीन की जाति, धर्म, आय का स्रोत, क्वालिफिकेशन आदि चीजे पूछने के बाद अंत में खुद को परेशान करने का कारण पूछा. मुल्ला नशरुद्दीन ने एक ही साँस में पूछा कि आपने एक बार दर्द ठीक किया पर दूसरी बार क्यों नहीं? जबकि दूसरी बार के दर्द में अधिक ध्यान और अधिक समय तक हनुमान का स्मरण उन्होंने किया. पहली बार किसी भक्त ने शहर में तपस्या की थी जिस कारण हनुमान को शहर की हवा लग गई थी, शहरी अंदाज में ही उन्होंने जवाब दिया “बिडू अपन क्या कोई डेंटिस्ट है क्या जो दांत दर्द ठीक करेगा?’ और चला गया. हनुमान का ऐसा सुनते ही मुल्ला नशरुद्दीन के दांत में एक बार फिर दर्द शुरू हो गया. वे फिर से झंड हो गए. इतिहास ने सच्ची में उसके साथ न्याय किया.