Saturday 1 August 2015

बद्रीनाथ और नर-नारायण पर्वत की अनूठी दाश्तान

नरसिंह मंदिर से संबद्ध एक रहस्य का वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में है। इसके अनुसार शालीग्राम की कलाई दिन पर दिन पतली होती जा रही है। जब यह शरीर से अलग होकर गिर जायेगी तब नर एवं नारायण पर्वतों के टकराने से बद्रीनाथ के सारे रास्ते हमेशा के लिये बंद हो जायेंगे। तब भगवान विष्णु की पूजा भविष्य बद्री में होगी जो तपोवन से एक किलोमीटर दूर जोशीमठ के निकट है।

भगवान के रहस्य कभी झूठे नहीं होते हैं। यह रहस्य मेरे कल रात के सपने पर आधारित है। कलियुग बीतने ही वाला था। एक दिन भयंकर वर्षा धूल धक्कड़ आंधी के कारण प्रलय सी स्थिति उत्पन्न हो गई। इससे पहले तो मोबाइल केबल नेटवर्क आदि सभी सूचना तंत्र फेल हो गए। फिर  शालीग्राम की कलाई टूट कर गिर गई। इसके बाद नर व् नारायण पर्वत टकरा गए और बद्रीनाथ जाने का मार्ग बंद हो गया।बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने के लिए 3-4 दिन ही रह गए थे। बद्रीनाथ जी को मार्ग बंद होने की सूचना देवगुप्तचरों द्वारा प्राप्त हुई। वे भक्तों को दर्शन देनें के लिए जोशीमठ की तरफ पैदल ही प्रकृति के नजारों का आनंद लेते हुए रवाना हुए। यह उनके भक्त प्रेम को दर्शाता है। लगातार चलने के कारण उन्हें विश्राम की जरुरत महसूस हुई। कमर सीधी करने के लिए वह एक मैदान में लेट कर गुनगुनी धूप और मंडराते बादलों  का आनंद लेने लगे।  ऐसे स्वर्गिक आनंद के बीच आँख लगना स्वाभाविक ही था। पर आँख लगी ही थी कि उन्होंने कुछ घुरघरररर घुरघरररर .... की आवाज बादलों के बीच से आती हुई सुनी। सोचने लगे - इंद्र ने भी भांग खा ली है शायद जो बार बार बारिश करवा रहा है, एक आध दिन चुप नहीं रह सकता है। सुस्ताने के अंदाज़ में आँखे खोली ही थी कि कोई पक्षी नुमा काला-काला जीव उसी घुरघरररर की आवाज के साथ अपनी तरफ आता हुआ दिखाई दिया। बदरीनाथ जी नें जब तक आँखे मली  तब तक पक्षी नुमा जीव आवाज करता हुआ उनके सामने ही उपस्थित हो गया। यह अजीब सा था। इसके पंख गोल गोल घूम रहे थे। सामने देखते ही उनके मुख से अयं की ध्वनि निकली। इससे पहले कि बद्रीनाथ जी इसे शुक्राचार्य की करतूत समझते इस जीव के अन्दर से शिवजी नंगधड़ंग बाहर प्रकट हो गए। बद्रीनाथ जी के आश्चर्य का ठिकाना ही न रहा। अयं की ध्वनि दुबारा उनके मुख से निकलती कि शिव जी ने डमरू बजाते हुए कहा - सरप्राइज! डर गया न, डर गया न तू। बद्रीनाथ जी ने संभलते हुए कहा- डरा तो नहीं, पर ये है क्या?
शिव जी- "तू कितना भी बड़ा हो जाए पर बद्री तेरी झूठ बोलने की आदत जाएगी नहीं।"
बद्रीनाथ जी- " और तू कितना भी बड़ा हो जाए पर तेरी नंगे रहने की आदत जाएगी नहीं शिव।"
इस पर दोनों ने ठहाके मारे। फिर बद्रीनाथ जी ने शिव जी से पूछा - "चल अब बता न क्या है ये? मैंने तो समझा शुक्राचार्य का नया राक्षस है।" शिवजी बोले- अबे सयाने, तू पक्का आउट डेटेड है। हेलीकाप्टर है ये हेलीकाप्टर। मेरे एक भक्त ने मुझे ऐसे दो और दान किए हैं। इससे कहीं भी उड़ कर आ-जा सकते हैं। केदारनाथ में आपदा के बाद मैं कोई दूसरी जगह सिफ्ट थोड़े ही हुआ, वहीँ भक्तों को दर्शन देता हूँ। मुझे पता था भक्तों के पास कुछ ऐसा है।"
बद्रीनाथ जी ख़ुशी और आश्चर्य के मिश्रित भाव से कहा- वाह यार, ये तो जबरदस्त चीज तेरे हाथ लगी है।" फिर झेंपते हुए बोले- अबे एक मुझे देगा? तेरे पास तो दो और हैं।" शिवजी-  मैं जानता था, तू अपनी आदत नहीं छोड़ेगा। तेरे लिए ही लाया हूँ ये।
बदरीनाथ जी- सच्ची?
शिवजी - मुच्ची।
फिर दोनों एक दुसरे के गले लगे। शिवजी- चल तुझे सैर कराता हूँ।
बद्रीनाथ जी- " अभी नहीं, तुझे खबर नहीं क्या! नर और नारायण पर्वत टकरा गए हैं सारे मार्ग बंद। भक्त लोगों को दर्शन देनें के लिए अब जोशीमठ रहना पड़ेगा।"
शिव जी- "अबे... जब भक्त लोग हेलीकाप्टर से केदारनाथ बिना सड़क के पहुँच सकते हैं तो तेरे पास नहीं आ सकते हैं क्या?
बदरीनाथजी आश्चर्य में सर हिलाते हुए - " हाँ यार!"
तत्पश्चात दोनों ही हेलीकाप्टर में उड़कर बद्रीनाथ धाम की तरफ चले।

उड़ते हुए दोनों ने मिरर में देखा कि पंकज नाम का भक्त पीछे से फाइटर प्लेन में बद्रीनाथ जी के दर्शन के लिए आ रहा है।