कविताओं में छुपे
हे ईश्वर!
मुझे पता है
तुम बाहर नहीं निकलोगे,
लाख पुकारने पर भी नहीं;
क्योकि
बाहर निकलते ही
तुम्हें उगाने होंगे
ख़जूर
अपने ही गंजे सर पर
या फिर
नागफनी
अपने ही नथुनों में.
पर मुझे पता है
तुम बाहर नहीं निकलोगे.
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