अधपन्ना
समाज ने मुझे क्या सिखाया या समाज से मैं क्या सीखा , बतौर अनुभव उनकी रसीद ......
Saturday, 9 February 2019
तुम - 2
हल खोजते हुए
किसी गणितीय समस्या का
मैं मान लेता हूँ
कुछ मनमाना, निर्गुण
और
अंत में पाता हूँ
एक ठोस, तार्किक जवाब
पाता हूँ
तुम्हें
तुम
किसी टूटी इमारत सा
जीवन के प्रति उदासीन
निढ़ाल
थकान में ध्वस्त
टूटा हुआ
पस्त
मैं तुम्हें पुकारता हूँ
जैसे हो अंतिम प्रार्थना
तुम छूती हो मेरे हाथ
कम्पन
नया जीवन
भर दिया गया हो मुझमें
एक और बार जैसे
चूमती हो मेरा माथा
मैं महसूस करता हूँ
अपना होना,
शोर के बीच
धुन का बजना
तुम
चूमती हो मेरी आँखें
मैं सपने देखने लगता हूँ
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